Hindi Kahani Chori Ki Saza | चोरी की सज़ा

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Hindi Kahani Chori Ki Saza

चोरी की सज़ा

चंदनवन में सभी जानवर बहुत मेलजोल से रहते थे। सब बहुत मेहनत से अपना अपना काम करते थे। लेकिन एक लोमड़ी मौसी ऐसी थी। जो कुछ भी काम नहीं करती थी। लोमड़ी मौसी के लिए चंदनवन में काम की कोई कमी नहीं थी। लेकिन यह इतनी धूर्त और आलसी थी कि कोई काम करना ही नहीं चाहती थी।

लोमड़ी मौसी सारा दिन अपनी कुटिया में आराम करती और रात होने पर दूसरे जानवरों के घरों में चोरी चोरी जाकर अपना पेट भरती। कईं जानवरों ने लोमड़ी को चोरी-चोरी खाते पकड़ा था। लेकिन वह फिर भी हेराफेरी करने से बाज नहीं आती थी। एक दिन लोमड़ी जंगल में घूम रही थी। जंगल में भालू दादा मधुमक्खियों का एक छत्ता तोड़ रहे थे। लोमड़ी उस पेड़ के नीचे पहुंची।

उसने भालू दादा से कहा – दादा मैं छत्ता तोड़ने में आपकी मदद करना चाहती हूं। ठीक है। तुम मेरे लिए कुछ काम करोगी तो मैं तुम्हें खाने के लिए शहद दूंगा। तुम लकड़ियां और घास फूस इकट्ठा करके पेड़ के नीचे जलाओ। लकड़ियों के धुए से मधुमक्खियां दूर भाग जाएगी तो मैं आसानी से छत्ता तोड़ दूंगा। भालू दादा की बात मानकर लोमड़ी मौसी ने ऐसा ही किया।

लकड़ियों के धुए से मधुमक्खियां भाग गई। तो भालू दादा ने छत्ता तोड़ लिया। घर जाकर भालू दादा ने शहद निकाला और लोमड़ी मौसी को खाने को दिया। शहद बहुत स्वादिष्ट था। लोमड़ी मौसी के मन में सारा शहद खाने का लालच हो रहा था। वह मन ही मन सारा शहद खा जाने की तरकीब सोचने लगी।

अगले दिन लोमड़ी मौसी और भालू दादा जंगल में गए। बहुत देर तक दोनों जंगल में घूमते रहे। बहुत देर के बाद उन्हें एक मधुमक्खियों का छत्ता दिखाई दिया। भालू दादा ने लोमड़ी से लकड़ियां इकट्ठी करके जलाकर धुंआ करने को कहा। लोमड़ी तो वहां से भागकर भालू दादा की झोपड़ी में रखे शहद को चट कर जाने की तरकीब सोच रही थी।

भालू दादा ने लोमड़ी से लकड़ियां इकट्ठी करने के लिए कहा तो वह झट से बोली दादा मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है। मेरा गला सूख रहा है। मैं नदी पर जाकर अभी पानी पीकर आती हूं। यह कहकर लोमड़ी नदी की ओर दौड़ पड़ी। बहुत देर तक लोमड़ी नहीं आई तो भालू दादा खुद ही लकड़ियां इकट्ठी करने लगे।

लोमड़ी मौसी दौड़ती हुई भालू दादा के घर पहुंची और वहां रखा हुआ सारा शहद खाकर दौड़ती हुई जंगल में भालू दादा के पास पहुंची। भालू दादा लकड़ीयाँ जलाकर छत्ता तोड़ चुके थे। लोमड़ी मौसी के साथ घर लौट कर भालू दादा ने हांडी देखी तो बड़ा हैरान हुआ। हांडी में शहद नहीं था। भालू दादा ने नए छत्ते में से लोमड़ी को शहद दिया।

अगले दिन फिर दोनों मिलकर जंगल में गए। एक छत्ता ढूंढकर भालू दादा ने लोमड़ी से लकड़ियां इकट्ठी करके आग जलाने के लिए कहा। तभी लोमड़ी ने प्यास का बहाना किया और नदी की और दौड़ पड़ी। भालू दादा को लोमड़ी की हरकत पर हैरानी हुई और वह लोमड़ी के जाने के बाद अपनी झोपड़ी की ओर चल दिए। उसे लोमड़ी पर शहद चोरी करने का संदेह हो गया था।

लोमड़ी शहद खाकर झोपड़ी से बाहर ही निकल रही थी कि भालू दादा ने उसे पकड़ लिया। आज भी लोमड़ी सारा शहद चट कर गई थी। भालू ने लोमड़ी को पकड़कर डंडे से खूब पिटाई की। चंदनवन के दूसरे जानवर भी वहां इकट्ठे हो गए थे। सब ने लोमड़ी को पीटते हुए देखा। उसे उसकी करनी का फल मिल चुका था।

भालू की मार खाकर लोमड़ी शर्म के मारे चंदनवन छोड़कर दूसरे वन में चली गई थी।

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