Hindi Kahani Chandragupt Ki Chaturai | चंद्रगुप्त की चतुराई

चंद्रगुप्त की चतुराई

Hindi Kahani Chandragupt Ki Chaturai

Hindi Kahani Chandragupt Ki Chaturai, Bacchon Ki Kahani, Kahani With Moral, Bacho Ki Kahani, Hindi Kahaniyan

सम्राट अशोक जिस मौर्यवंश के शासक थे। उसके संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य भी एक महान शासक थे। यह प्रथम भारतीय सम्राट थे जिन्होंने राजनीतिक दृष्टि से समस्त भारत को एक सूत्र में बांधा था। चंद्रगुप्त मौर्य बचपन में बहुत गरीब थे। इनकी मां मुरा दाई का काम करती थी और यह खुद चरवाहे का काम करते थे।

कहा जाता है कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात यह उक्ति चंद्रगुप्त मौर्य पर पूरी तरह फिट बैठती थी। बचपन से ही उसमें शासक के गुण विद्यमान थे। एक दिन की बात है। सभी गाय चर रही थी। बालक चंद्रगुप्त के साथ कईं चरवाहे भी वहां इकट्ठा थे। हर रोज की तरह उनका खेल चल रहा था। एक ऊंचे टीले पर चंद्रगुप्त बैठा था।

उसने अन्य चरवाहों में से किसी को मंत्री, किसी को सेनापति आदि बनाकर राजदरबार लगा रखा था। चरवाहों में से ही कोई फरियादी बना हुआ था। तरह-तरह के फैसले बालक चंद्रगुप्त बड़ी आसानी से एकदम राजा की तरह सुना रहा था। बालक चंद्रगुप्त सभी चरवाहों का प्रमुख था। वह रोज इस तरह के खेल उनके साथ खेला करता था।

एक दिन जब यह खेल चल रहा था। उसी समय चाणक्य उधर से गुजर रहे थे। यह सब देखकर चाणक्य बड़े प्रभावित हुए। वह एक ब्राह्मण की तरह बालक चंद्रगुप्त के सामने पहुंचे। चंद्रगुप्त ने एक राजा की भांति उन्हें सम्मान देते हुए उनसे उनकी इच्छा पूछी। चाणक्य ने कहा राजन मुझे गौ चाहिए।

बालक चंद्रगुप्त ने राजश्री अंदाज में कहा – हे ब्राह्मण यहां गाय चर रही है आपको जितनी गाय चाहिए ले लीजिए। तभी मुरा वहां पहुंची। चाणक्य से बालक की गलती के लिए उसने माफी मांगते हुए अपनी दिन हालत बताई। चाणक्य ने कहा मुरा तुम्हारा पुत्र बड़ा होनहार है। तुम परसों इसे लेकर नंद के दरबार में आना।

चाणक्य के कहे मुताबिक मुरा निश्चित समय पर चंद्रगुप्त को लेकर दरबार में पहुंची। उसी समय अवंती के राजा के यहां से एक राजा के लिए उपहार स्वरूप पिंजड़े में बंद शेर तथा एक पत्र लेकर आया था। पत्र में लिखा था कि बिना पिंजड़े को खोले शेर को बाहर निकालना है। राजा ने दरबार में घोषणा की कि वह कौन है जो ऐसा कर सकता है।

मंत्री, दरबारी सभी सन्न हो गए। किसी को कोई उपाय न सुझा। बालक चंद्रगुप्त अचानक कह उठा महाराज मुझे आज्ञा दीजिए। मैं इस शेर को पिंजड़ा खोले बिना बाहर निकाल दूंगा। राजा ने उसे डांट दिया। तब चाणक्य ने राजा से उस बालक को एक मौका देने के लिए कहा। सुनो ढीठ बालक।

यदि तुम इस कार्य में सफल नहीं हुए तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। राजा नंद ने कहा। बालक ने भी उसी अंदाज में कहा मंजूर है। और थोड़ी सी आग और सूखी घास मांगी। आग मिलने पर उसने घास को आग लगाकर पिंजड़े में शेर के नीचे रख दिया। थोड़ी ही देर में शेर पिघल कर गिरने लगा। क्योंकि शेर मोम का बना था।

सभी लोग बालक की बुद्धिमता पर वाह-वाह कर उठे। तभी चाणक्य के कहने पर राजा ने उस बालक के सारे खर्च की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए उसे पढ़ने के लिए तक्षशिला भेज दिया। यही बालक बड़ा होकर एक दिन महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बना।

आपको Hindi Kahani Chandragupt Ki Chaturai Bacchon Ki Kahani कैसी लगी हमें कमेंट करके जरुर बताएं. इस कहानी को अपने मित्रों और परिजनों के साथ भी शेयर करें.

 

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *