Mor Ki Kahani | मोर के पैर कुरूप क्यों ?

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Mor Ki Kahani

यह उस समय की बात है जब मोर के पैर उसके रूप की तरह ही सुंदर थे। उसे अपनी सुंदरता पर गर्व था। वह सब पक्षियों में अपनी धाक जमाता कि उस जैसा रूपवान पक्षी इस दुनिया में और कहीं नहीं। प्रकृति ने उसे सिर से लेकर पैरों तक खूबसूरती का खजाना दिया है। एक बार मोरों का समूह एक तालाब पर पानी पीने के लिए उतरा।

तालाब की दूसरी और एक घने वृक्ष के नीचे एक मुनि योग साधना में लीन बैठे थे। उनके पास ही एक सांप अपना फन उठाए मुनि को डंसने के लिए तैयार था। तभी मोरों के राजा चित्रगुप्त ने यह देखा। बिना देर किए वह उड़कर सांप पर झपटा और कुछ देर घात प्रतिघात करने के बाद उसने सांप का अंत कर दिया।

अब तक मुनि का ध्यान भी टूट चुका था। वह सारा माजरा समझ गए। उन्होंने खुश होकर चित्रगुप्त को कोई वर मांगने के लिए कहा। चित्रगुप्त ने अपने साथियों से विचार-विमर्श किया और फिर उन्होंने मुनि से कहा। महात्मा हम अपने पैरों से बहुत कुरूप हैं। आप अगर देना चाहते हैं तो यह दीजिए कि हमारे पैर सोने के हो जाएं।

मुनि बोले बहुत खूब फिर कुछ देर के लिए अपनी आंखें मूंद ली और कुछ क्षणों के पश्चात ही सभी मोरों के पैर सोने के हो गए। मोरों को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। उनकी सुंदरता और ज्यादा बढ़ गई थी। मारे खुशी के उनके पांव जमीन पर नहीं लग रहे थे। इसी प्रसन्नता में वह मुनि को धन्यवाद कहना ही भूल गए।

तभी अचानक वर्षा होने लगी। यह देख मौर मस्ती में नाचने लगे। उन्हें मुनि की उपस्थिति का ध्यान भी ना रहा। उनके ऐसा करने से उनके पैरों से उछले कीचड़ के कुछ छींटे मुनि के मुख पर पड़े। मुनि क्रोधित हो उठे और बोले घोर अपमान। मैंने तुम्हारी सुंदरता बढ़ाकर तुम्हें सम्मान दिया और तुम लोगों ने मुझ पर छींटे डालकर मेरा ही अपमान किया।

मैं तुम्हें शराप देता हूं कि इसी क्षण तुम्हारे पैर इतने कुरूप हो जाए कि तुम इन्हें देख हमेशा आंसू बहाओ। और ऐसा ही हुआ उसी क्षण मोरों के स्वर्ण पैर कुरूप हो गए। उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। वे मुनि से क्षमा मांगने लगे और शराप वापस लेने के लिए निवेदन किया। मगर मुनि का शराप कमान से निकले तीर की तरह था।

आज भी आकाश में छाए हुए बादलों को देखकर जितनी खुशी मौर को होती है। उससे कहीं अधिक दुख उसे अपने पैरों की कुरूपता देखकर होता है। उदास होकर आंसू बहाने लगता है।

शिक्षा : कहानी की सत्यता जो भी रही हो परंतु यह सत्य है कि अपने किसी भी वस्तु के अभिमान में इतना मस्त नहीं हो जाना चाहिए कि हम मर्यादा ही भूल जाएं।

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