कोयल और बगुला | Koyal Aur Bagula, Hindi Kahani
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फागुन का महीना था। बसंत ऋतु थी। आम के एक पेड़ पर बैठकर सुबह-सुबह कोयल ‘कुहू कुहू’ गा रही थी। कोयल की मीठी और सुरीली आवाज सुनकर एक बगुला उसके करीब आ पहुंचा। फिर झट से बोला : कोयल बहन, तुम्हारी आवाज में तो बहुत मिठास है। तो फिर ? मगर तुम्हारी सूरत तो काली है। भगवान ने सचमुच बड़ी गलती की है, बबूला बोला। कैसी गलती ?
कोयल उत्सुक हो उठी। जैसी तुम्हारी सूरत है आवाज भी वैसे ही होनी चाहिए। बगुला ने आगे कहा : देखो मैं कितना गोरा चिट्टा हूं, सफेद झक झक। तुम्हारी सुरीली आवाज तो मुझे मिलनी चाहिए। बगुला भाई एक बात कहूं ? कोयल बोली। जरूर कहो। भगवान ने जो कुछ किया है ठीक ही किया है। उसने कोई गलती नहीं की है। कैसे नहीं की है ?
कोयल की बात मानने के लिए बगुला एकदम तैयार नहीं था। जरा सोचो ! तुम्हारा रंग उजला है तो तुम्हें उसका कितना घमंड है ? कोयल समझा कर बोली : अगर तुम्हारी आवाज भी सुरीली और मीठी होती तो तुम्हारा घमंड क्या और नहीं बढ़ जाता ? सदैव याद रखो : घमंडी की अच्छी आवाज भी भद्दी हो जाती है। उसका अच्छा रूप भी खराब लगने लगता है।
भगवान ने तुम्हें जैसी भी आवाज दी है ठीक है। खूब सोच विचार कर दी है ऐसा समझ लो। कोयल की बातों में गहरी सच्चाई थी। सुनकर बगुला के मुंह की बोली बंद हो गई।
शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भगवान ने जैसा बनाया है सही बनाया है और हमें दूसरों पर घृणा नहीं करनी चाहिए.
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