Hindi Kahani Soch Ka Taraju | सोच का तराजू
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सोच का तराजू
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निधिवन में आशना नाम की एक बंदरिया अपनी मां के साथ रहती थी। वह बड़ी ऊर्जावान थी। नृत्य, गीत, संगीत, चित्रकला, अभिनय आदि हर क्षेत्र में वह पारंगत थी। लेकिन उसमें एक बुरी आदत थी। वह थी उसकी ज्यादा बोलने की आदत। उसका वाणी पर नियंत्रण नहीं था। सोचे बिना ही वह अंट संट बोलती थी।
जिससे सुनने वाले का मन बेचैन हो जाता। इस कारण वन के प्राणी उससे बात करने से कतराते थे। एक दिन माँ ने उससे कहा बेटा दूसरों के साथ संभाषण करते हुए अपने शब्द और अपनी क्रियाएं दूसरों के लिए योग्य हैं या नहीं इस पर विचार कर लेना चाहिए। क्योंकि फिर प्राणी को बाद में पता लगता है कि वह गलत था। लेकिन आशना ने मां की बात को अनसुना कर दिया।
वन के हाथी पार्क के पास सोनू नाम की एक बंदरिया रहती थी। उसका दूध का अच्छा कारोबार था। आशना की मां उसके बचपन की सहेली थी। एक रोज वन के साथ रहने वाले गांव में एक मेला लगा। दूर-दूर से प्राणी मेला देखने आए। सोनू ने सोचा वर्षों बाद मेला भरा है मैं भी देख आती हूं। यह सोच वह अपनी सहेली के घर गई। उस वक्त आशना की माँ घर में नहीं थी।
उसने आशना से पूछा बेटा तुम्हारी मां कहां है ? आशना बोली माँ तो किसी काम से बाहर गई हुई है। क्या कोई काम था ? सोनू ने कहा हां बेटा मेला देखने जाना था। आशना ने पूछा मेला देखने से क्या होता है ? सोनू बोली बेटा मेला देखने से जीवन में आनंद और खुशियों का संचार होता है।
फिर मनोरंजन के साथ-साथ मेलों में हमारे समाज की परंपराओं, मान्यताओं और संस्कृति की झलक भी मिलती है। इससे हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है। आशना बोली बड़ी देर से तुमने मेला मेला लगा रखा है। मेला देखने के लिए पैसे चाहिए। हैं तुम्हारे पास पैसे ? कंगाल कहीं की। आई बड़ी मेला देखने। चल फुट यहाँ से।
सुन कर सोनू चुपचाप वापस आ गई और अकेले ही मेला देखने चली गई। मेले में सोनू ने बहुत मनोरंजन किया और काफी खरीददारी भी की। अगले दिन सोनू आशना के घर गई उसे कंगन और माला देते हुए वह बोली। बेटा यह सब तुम्हारे लिए मेले से लाई हूं। रख लो। यह देख आशना की आंखों से आंसू गिरने लगे। वह आत्मग्लानि से भर उठी, रोने लगी।
वह काफी देर तक रोती रही। फिर रोते-रोते बोली। आंटी मैंने अपने बुरे बोलो से आपके मन को आहत किया और सोचे बिना ही बोल दिया कि आप कंगाल है। मैं साफ गलत थी। आइंदा मैं अपने हर बोल को सोच के तराजू पर तोल कर ही बोलूंगी। मुझे माफ कर दो। सोनू आशना के आंसू पहुंचते हुए बोली बेटा तुम्हें माफ़ी की आवश्यकता नहीं।
क्योंकि जो प्राणी पश्चाताप के आंसू बहाता है उसका मन निर्मल हो जाता है। बेटा अब तुम्हारा मन निर्मल है। आशना में आए अचानक इस परिवर्तन को देखकर उसकी मां को बड़ी खुशी हुई। अब वन का हर प्राणी आशना से बात करने के लिए लालायित रहता था।
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