Hindi Kahani Nanha Khargosh | नन्हा ख़रगोश
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नन्हा ख़रगोश
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नन्हा खरगोश बहुत छोटा था। परंतु उसकी इच्छा थी कि वह अपने माता पिता की तरह सारे जंगल में घूम फिर कर आए। दरअसल नन्हा अभी बच्चा था। इसलिए उसके पिता पीरु और माँ नीरू उसे घर से बाहर निकलने के लिए मना करते थे। वह कभी कभी ज़िद्द भी कर लेता था। किंतु पीरू उसे डांट मार कर चुप कर देता। तो कभी माँ नीरू उसे प्यार से समझाती।
बेटा तुम अभी बहुत छोटे हो। जंगल में बड़े भयानक जानवर है। यदि तुम बाहर गए तो वह तुम्हें खा जाएंगे। क्या मां। आप बड़ी डरपोक हो। कभी जानवर किसी दूसरे जानवर को खाता है ? तुम तो घास फूस खाती हो। तुमने कभी कोई जानवर खाया है क्या ? नाना बोला। नन्हे तुम बहुत ज्यादा बोल रहे हो। सब जानवर एक जैसे नहीं होते। जंगल में कुछ शाकाहारी है।
और कुछ मांसाहारी है। हम लोग शाकाहारी प्राणी है बेटा। नीरु ने फिर समझाते हुए कहा। एक दिन, पीरु और नीरू जंगल में घास खाने के लिए निकल गए। नन्हा घर में अकेला रह गया। उसका अकेले में मन नहीं लग रहा था। उसने सोचा क्यों ना घर से बाहर निकल कर घूम फिर कर आऊँ। मम्मी पापा के आने से पहले वापस लौट आऊंगा।
नन्हा खरगोश तुरंत घर से बाहर निकल गया। चारों तरफ हरे भरे पेड़ देखकर वह बहुत खुश हुआ। ठंडी ठंडी हवा ने तो उसे और ज्यादा मस्त कर दिया था। वह उछल कूद करता करता नदी के किनारे पहुंच गया। वहां उसे हरि हरि मुलायम मुलायम दुब नजर आई। वह झट उसे खाने में लग गया। अचानक वहां एक सियार पानी पीने के लिए आ गया।
सियार की नजर जैसे ही उस नन्हे खरगोश पर पड़ी। तो उसके मुंह में पानी आ गया। वह मन ही मन सोचने लगा कि वाह आज भगवान ने कितना प्यारा और स्वादिष्ट भोजन दिया है। खरगोश का शिकार करे बरसों बीत गए। आज तो मजा आ गया। उसने तुरंत नन्हे को पकड़ने के लिए छलांग लगाई। नन्हा बड़ा फुर्तीला था। वह भी उछलकर दूर हट गया। सियार को गुस्सा आ गया।
वह बोला अरे खरगोश के बच्चे मुझ से बच कर कहां जाएगा ? आज तुम जैसा स्वादिष्ट भोजन बड़ी मुश्किल से मिला है। आजा मेरे पास वरना। वरना क्या अंकल ? मुझे पकड़कर दिखाओ जब तुम्हें जानूं। नन्हा जोर-जोर से हंसा। नन्हे की बात सुनकर उसे और गुस्सा आ गया। वह नन्हे को पकड़ने के लिए दौड़ा नन्हे ने फिर फुर्ती दिखाते हुए लंबी दौड़ लगाई। सियार कुछ भारी था।
किंतु वह भी पीछे-पीछे हांफता हुआ दौड़ रहा था। कभी-कभी नन्हा झाड़ियों में छिप जाता तो सियार इधर-उधर तलाश करने लगता। फिर झाड़ी से निकलकर सीटी बजा कर बोलता – अंकल मैं इधर हूं। सियार उसे देख कर फिर भाग पढ़ता। ऐसी आंख मिचोली 1 घंटे तक चलती रही। सियार की साँस फुल गयी।
वह एक पेड़ के नीचे राहत की सांस ले रहा था कि एक चीते ने सियार पर हमला कर दिया। यह दृश्य झाड़ी में छुपा नन्हा देख रहा था। उसके रोंगटे खड़े हो गए। उस चीते ने सियार को वही मार डाला। नन्हा पसीने पसीने हो गया। वह सोचने लगा कि यदि मैं पकड़ा जाता तो सियार मेरा भी यही हाल करता। मम्मी पापा ठीक कहते हैं कि जानवर जानवर का दुश्मन होता है।
वह मन में कहने लगा काश सब जंगल के प्राणी मिलजुल कर रहते तो कितना अच्छा होता। वह थोड़ी देर के बाद रास्ता साफ होते ही अपने घर की तरफ दौड़ा। उधर उसके माता पिता नन्हे को घर पर ना पाकर दुखी थे। जैसे ही नन्हा खरगोश हांफता हुआ घर में घुसा। तो पिता पीरु और मा नीरू को राहत की सांस मिली। पीरु ने पूछा कहां गया था रे नन्हे ?
देख तेरी मां का और मेरा क्या हाल हो गया तुम्हारी चिंता में। पिताजी मुझे माफ कर दो। मैं आप के मना करने पर भी घर से बाहर निकल गया। सचमुच आप ठीक कहते थे कि जंगल में खतरनाक जानवर है। जो एक दूसरे को खा जाते हैं। तेरे साथ तो कुछ… नीरू ने आंखों में पानी भरते हुए पूछा। हां मां, आज बड़ी मुश्किल से जान बचाकर आया हूं।
नन्हे खरगोश ने सारी कहानी अपने माता पिता को बताई। नन्हे को दोनों ने कलेजे से लगा लिया। नन्हा खरगोश अब समझदार होने तक घर में ही रहने लगा। और अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करना ही उसके जीव उनका उद्देश्य बन गया था। वह जंगल की पहली यात्रा को याद करके कांप जाता था।
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