दौलत की सच्चाई | Daulat Ki Sachhai Hindi Kahani
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दौलत की सच्चाई
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बहुत दिन हुए बगदाद में नसीरुद्दीन नामक एक इमानदार आदमी रहता था। सभी उसकी बड़ी इज्जत करते थे। एक बार नसीरुद्दीन को किसी काम से बाहर जाना पड़ा। सफर जहाज से करना था। इसलिए जाने से पहले नसीरुद्दीन ने अपनी सभी जरूरी चीजें ले ली। साथ ही 1000 सोने की अशर्फियां भी। नसीरुद्दीन के अच्छे और मिलनसार स्वभाव से सभी प्रभावित थे।
एक यात्री से नसीरुद्दीन का बड़ा अच्छा परिचय हो गया। एक दिन बातों के दौरान नसीरुद्दीन ने अपने पास रखी 1000 अशर्फियां उस यात्री को दिखा दी। इतनी सारी अशरफिया देख उस यात्री की नियत बिगड़ गई। वह किसी भी तरह से उन अशर्फियों को हड़प लेना चाहता था। चोरी तो वह कर नहीं सकता था।
जहाज में तलाशी होती, तो वह आसानी से पकड़ में आ जाता। आखिर उसने वह अशर्फियाँ पाने के लिए एक उपाय सोचा। अगले दिन सवेरे सवेरे वह चिल्लाने लगा मैं लुट गया। मेरी 1000 अशर्फियाँ जहाज में किसी ने चुरा ली। हाय अब मेरा क्या होगा। यह सुनकर जहाज के सभी यात्री उसके पास इकट्ठा हो गए। सारी बात सुन यात्रियों ने कहा घबराओ।
मत चोर होगा तो जहाज में ही। तलाशी में जिसके पास अशर्फियाँ निकलेगी। उसे पकड़ लेंगे। एक-एक करके सभी यात्रियों के सामान की तलाशी ली गई। अंत में नसीरुद्दीन की तलाशी लेना बाकी रह गया। उसे देखकर जहाज के एक यात्री ने कहा – अरे नसीरुद्दीन की क्या तलाशी ली जाए ? उन पर सन्देह करना खुद को गाली देने के बराबर है।
सभी यात्रियों के उस यात्री की बात का समर्थन किया। लेकिन खुद नसीरुद्दीन ने कहा नहीं। जब आप लोगों ने सबकी तलाशी ली है तो मेरी भी तलाशी लीजिए। इससे किसी भी किस्म का संदेह नहीं रह जाएगा। नसीरुद्दीन की बात सुनकर वह यात्री बड़ा खुश हुआ। नसीरुद्दीन के बहुत जोर देने पर उसकी तलाशी ली गई। लेकिन अशर्फियाँ ना मिली।
जहाज के कर्मचारी ने जहाज का कोना-कोना छान मारा लेकिन कहीं भी अशर्फियाँ नहीं मिली। सभी को विश्वास हो गया कि यात्री झूठ बोल रहा है। उधर वह मुसाफिर हैरत में था सोच रहा था आखिर नसीरुद्दीन की अशर्फियां गई कहां ? बात आई गई हो गई। सभी यात्री इस घटना को भूल गए।
दो-तीन दिन बाद उस यात्री ने अकेले में नसीरुद्दीन से कहा – मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं। जब आपकी तथा आपके सामान की तलाशी ली गई। तो आपके पास से अशर्फियाँ क्यों नहीं निकली ? यह सुनकर नसीरुद्दीन के होठों पर मुस्कान फैल गई। उसने कहा मैंने अशर्फियाँ समुद्र में फेंक दी. समुद्र में ? लेकिन क्यों ?आश्चर्य से उस यात्री ने प्रश्न किया।
नसीरुद्दीन ने जवाब दिया देखो भाई। बहुत सीधी सी बात है मैं तुम्हारी चालाकी भांप गया था। मेरी सच्चाई और ईमानदारी पर सब को यकीन था। तलाशी के वक्त मेरे पास अशर्फियाँ निकलती तो भी मेरे कहने से लोग मेरी बात पर विश्वास कर लेते। लेकिन मेरी ईमानदारी और सच्चाई के प्रति उनके मन में शंका भी हो सकती थी। अशर्फियाँ का क्या, गई तो गई।
फिर कमा लूंगा। लेकिन थोड़े से धन के लालच में मैं सच्चाई, विश्वास और इमानदारी की दौलत को खोना नहीं चाहता था। इसलिए मैंने ऐसा किया। नसीरुद्दीन की बात सुनकर वह उनके कदमों में गिर कर फूट-फूट कर रोने लगा। नसीरुद्दीन ने उसे उठाकर गले लगा लिया और माफ कर दिया।
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