Hindi Kahani Jaise Ko Taisa | जैसे को तैसा
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जैसे को तैसा
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आसपास ही बसे दो गांवों में रहने वाले दो व्यक्ति रामू और श्यामू एक दूसरे के अच्छे जान पहचान वाले थे। जहां रामू अत्यंत उदार, मेहनती, दूसरों पर भरोसा करने वाला ईमानदार था। वही श्यामू कंजूस, लालची, कमजोर तथा बेईमान चरित्र वाला था। एक बार रामू श्यामू के गांव आया और टहलते और बातें करते हुए, वे दोनों गांव से बाहर निकल पड़े।
अचानक दोनों की नजर एक झाड़ी के पास पड़े चमकते हुए छोटे से लोटे पर पड़ी। दोनों एक साथ वहां पहुंचे और श्यामू ने लौटा उठा लिया। लोटा देखने में तो बहुत छोटा था। परंतु वह बहुत कीमती था क्योंकि वह सोने का था। श्यामू के मन में लोटा खुद हजम करने का लालच आ गया। इसलिए और रामू से कहने लगा भाई रामू मुझे यह पीतल की लुटिया लग रही है।
भला सोने की लुटिया कोई क्यों बनवाएगा। इस पर सोने का पानी चढ़ा लगता है। यह सुनकर रामू ने भोलेपन से कहा भाई श्यामू तुम अपने गांव में चल कर इसकी जांच करा लेना। किंतु क्योंकि हम दोनों को मिला है इसका दाम लगवा लेना और जो दाम मिले उसका आधा मुझे दे देना। मैं उसे खुद ना रख कर अपने गांव के विद्यालय को दे दूंगा।
ताकि उसका सही उपयोग हो सके। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। मैं तो अपने गांव लौट रहा हूं और अगली बार जब आऊंगा तब जो होगा वैसा बटवारा करूंगा। लगभग दो महीने बाद रामू श्यामू के गांव आया। श्यामू ने उसे देख कर खुशी तो जाहिर की पर मन ही मन लोटे के बारे में बहाना सोचने लगा। खाना खाते समय श्यामू ने ही बात शुरू की।
भाई रामू मैंने लोटा स्वर्णकार को दिखलाया उसने उसे जांचने के लिए आग पर रखा तो वह पिघल गया। लोटा ना तो सोने का था, ना ही पीतल का पता नहीं किस धातु का था। मुझे बड़ा अफसोस हुआ काश मैं स्वर्णकार के पास ना जाता तो कम से कम सुंदर सा लोटा सजाने के काम तो आता। रामू ने सांत्वना देते हुए कहा व्यर्थ अफ़सोस कर रहे हो दोस्त।
जो होना था हो गया कौन सा हमने उसे कमाया था जो गम आने का दुख की या जाए। श्यामू यह सुनकर खुश हो गया। उसे कीमती लुटिया हजम करने में कोई दिक्कत जो नहीं हुई थी। अगले दिन रामू अपने गांव जाने लगा तब उसने श्यामू से कहा तुम तो जानते ही हो मेरा कोई बेटा नहीं है। एक लड़की थी उसका विवाह कर दिया।
मेरी पत्नी ने कहा है कि अगर कुछ दिनों के लिए तुम अपने लड़के को भेज दो तो उसका दिल बहल जाएगा और फिर आजकल छुट्टी भी चल रही है। इससे पढ़ाई का भी नुकसान नहीं होगा। श्यामू इसके लिए तुरंत तैयार हो गया। उसने अपने लड़के को रामू के साथ जाने को कह दिया। रामू उसके बेटे के साथ अपने गांव लौट आया।
गांव लौटने के अगले दिन वह एक मदारी से मिला तथा उससे कहा कि कुछ दिनों के लिए अपना बंदर लेकर उसके घर पर ही रहे और वह उसका पूरा खर्च संभालेगा। उसे बस इतना करना होगा कि वह बंदर को रामू का इतना फालतू बना दे कि बुलाने पर वह उसके पास आ जाए। और करतब दिखाने लगे। भला मदारी को क्या एतराज था।
वह अगले ही दिन एक बंदर के साथ आ गया और बंदर को उसका पालतू बनाने में जुट गया। जब बंदर उसका फालतू हो गया तो उसने श्यामू के बेटे को अपनी बहन के घर दूसरे गांव में भेज दिया और श्यामू को अपने गांव बुलवा भेजा। रामू ने श्यामू की बड़ी ही आवभगत की, पर अपना चेहरा गमगीन बनाए रखा।
खाना खाते समय तक जब श्यामू को अपना बेटा नहीं दिखा, तब उसने रामू से उसके बारे में पूछा। रामू ने रोनी सूरत बनाकर कहा क्या कहूं दोस्त मैं बहुत ही शर्मिंदा हूं। समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम्हें कैसे बताऊं। यह सुनकर श्यामू काफी घबरा गया। उसने रामू से पूछा आखिर बात क्या है ? मुझे जल्दी बताओ। मेरा दिल घबरा रहा है। सचमुच मैं बहुत शर्मिंदा हूं।
मुझे माफ कर देना दोस्त। शायद तुम विश्वास ना करो पर यह हकीकत है। कुछ दिनों पहले अचानक उसकी हरकतें बदल गई। वह बंदरों की तरह उछलने कूदने लगा। अगले दिन तो उसका चेहरा बंदरों जैसा ही हो गया और उसे पूंछ भी निकल आई। मैं काफी घबरा गया। सोचा शायद वह ठीक हो जाए पर जब ऐसा नहीं हुआ तब ही मैंने तुम्हें बुलवा भेजा।
फिर रामू ने उसके बेटे को आवाज दी और उसके बुलाते ही बंदर का बच्चा वहां आ गया, उछलने कूदने लगा। कभी वह रामू के कंधे पर बैठ जाता, तो कभी श्यामू के। श्यामू यह देखकर घबरा गया। वह समझ गया कि रामू उसके व्यवहार का बदला ले रहा है। वह रामू के पैरों में गिर गया और उससे क्षमा मांगी। वह शीघ्र गांव आया और लुटिया लाकर रामू को सौंप दी।
रामू ने उसके बेटे को बहन के यहां से बुलवा कर उसे सौंप दिया। फिर रामू और श्यामू ने सोने की लुटिया गांव के विद्यालय को सौंप दी।
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