Hindi Kahani Murti Se Prerna | मूर्ति से प्रेरणा
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मूर्ति से प्रेरणा
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एक राजा था। उसे तरह-तरह की मूर्तियों का निर्माण करवाने का बड़ा शौक था। उसके एक विशाल शाही महल में विश्व के शिल्पकारों द्वारा निर्मित कई मूर्तियों का अद्भुत संग्रह भी था। एक दिन राजा ने अपने मुख्यमंत्री से कहा – हमारे पास कई तरह की मूर्तियां हैं। लेकिन अब हम चाहते हैं कोई शिल्पकार ऐसी मूर्ति का निर्माण करे, जो देखने वालों को कुछ प्रेरणा भी दे।
मुख्यमंत्री ने कहा ठीक है कल ही मैं राजधानी में यह ऐलान कर देता हूं कि जो शिल्पकार प्रेरणा युक्त मूर्ति बनाएगा उसे एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में मिलेंगी। प्रेरणा युक्त मूर्ति के निर्माण पर इतना बड़ा इनाम देखकर कई शिल्पकारों ने सोचा आखिर वह कौन सी मूर्ति बनाई जाए जिस पर इनाम मिल सके।
फिर एक निश्चित दिन एक विशाल मैदान में एक दर्जन से अधिक शिल्पकार एकत्रित हुए। सभी अपनी अपनी कल्पना से मूर्तियों का निर्माण करने लगे। तकरीबन 3 हफ्ते उपरांत सभी शिल्पकारों ने अपनी अपनी मूर्तियां पूर्ण कर ली। फिर राजा और मुख्यमंत्री ने एक-एक कर मूर्तियों को देखना शुरू किया। दोनों ने लगभग 11 मूर्तियां देखी।
हर मूर्ति अपने आप में सुंदर और मुंह बोलती थी। लेकिन उनसे प्रेरणा युक्त कोई बात नहीं झलक रही थी। अंत में दोनों बाहरवें नंबर की मूर्ति के पास पहुंचे। उस मूर्ति के सिर के अगले हिस्से पर बड़े-बड़े बाल लटक रहे थे। लेकिन मूर्ति पिछले हिस्से से इतनी गंदी बनी थी की उंगलियां फिसल जाती।
सिर की इस अनोखी बनावट ने मूर्ति की खूबसूरती में एक तरह से कमी कर दी थी। मूर्ति को देखकर आसपास बड़े दरबारी एक दूसरे से चर्चा करते हुए कह रहे थे। शिल्पकार ने अपनी बुद्धिमानी से ही इसकी खूबसूरती को कम किया है। अंत में जब राजा से रहा न गया तो उसने मूर्ति की इस अजीब बनावट का कारण उस शिल्पकार से जानना चाहा।
शिल्पकार बोला महाराज यह समय की मूर्ति है। राजा ने चकित होकर पूछा भला यह समय की मूर्ति कैसे हैं ? हां महाराज समय की। शिल्पकार ने कहा यदि आप इसे आगे से पकड़ना चाहो तो आसानी से पकड़ सकते हो। अगर समय को पीछे से पकड़ने का प्रयास करोगे तो इसे कभी नहीं पकड़ पाओगे। राजा ने मुख्यमंत्री की तरफ देखते हुए कहा मैं समझा नहीं।
आखिर यह शिल्पकार कहना क्या चाहता है। अब शिल्पकार ने समझाते हुए कहा ठीक यही हालत समय की है इस मूर्ति की तरह समय को भी आगे से ही रोका जा सकता है। समय के गुजर जाने के उपरांत अगर कोई अवसर तलाशना चाहे तो उसे मुंह की खानी पड़ती है। यह सुनकर राजा को बोध हुआ। दरअसल यह सच्ची प्रेरणा युक्त आधुनिक मूर्ति है।
फिर राजा ने शिल्पकार को गले लगाते हुए कहा जैसी मूर्ति मैं चाह रहा था वैसी ही तुमने बनाकर मेरी हकीकत में सच्चाई का रंग भरा है। तुम पुरस्कार के योग्य हो। राजा ने वायदे के मुताबिक शिल्पकार को एक हज़ार स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार दिया और उस मूर्ति को अपनी शाही बैठक के समक्ष प्रतिष्ठित करवाया। ताकि दर्शकों को मूर्ति से सदा नसीहत मिलती रहे।
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