गलती का एहसास | Galti Ka Ehsas Hindi Kahani
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गलती का एहसास
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घने जंगल में आम का एक पेड़ था। उसकी शाखा की कोटर में कौवा रहता था। उसी पेड़ की दूसरी शाखा के कोटर में एक कोयल भी रहती थी। दोनों के व्यवहार में बहुत सम्मानता थी। इस कारण बातचीत भी नहीं के बराबर होती थी। कौवा स्वभाव से मतलबी और आलसी था। आवाज फटे बांस की तरह कर्कश थी। फिर भी घमंड में चूर रहता था।
जबकि कोयल स्वभाव से मिलनसार एवं नेक दिल थी। सभी वन्य प्राणी उसकी सुरीली आवाज के कायल थे। वह बहुत ही परिश्रमी भी थी। एक ही वृक्ष पर एक जैसे दिखने वाले दो पक्षी एक बिना कुछ परिश्रम किये ऐश की जिंदगी गुजारने की फिराक में रहता था। जबकि दूसरी सुबह काम पर निकल जाती।
आवश्यकतानुसार संगी साथियों की सहायता करती और शाम होते अपने कोटर में सकुशल लौट आती। कौवा दिनभर मटरगश्ती करता। जब कभी भूख लगती तो वह किसी ना किसी से कुछ मांग कर खा लेता। फिर अपने कोटर में जाकर आराम करने लगता। मौका देखकर कभी-कभी वह कोयल के कोटर से भी खाना चुरा लेता।
कोयल के शुभचिंतक जब कौवे की इस हरकत के बारे में उसे बताते, तो वह मुस्कुरा कर कहती। कोई बात नहीं। दरअसल वह सोचती थोड़ा सा खाना चुराकर मेरा भाग्य थोड़ी चुरा लेगा। एक दिन कौवे को अपने मित्रों के साथ गप्पे मारते देख कोयल समझाने की नियत से बोली – भाई। कैसे हो ? दिनभर गप्पे लड़ाते हो कभी दाना चुगने क्यों नहीं जाते ?
इस पर वह मुंह बिचकते हुए बोला। हूं !बड़ी आई सलाह देने वाली। अरे खूब मजे में हूं। मैं तेरे जैसी दिन भर मजदूरी नहीं करने वाला। लगता है आप बुरा मान गए मैं तो आप के भले के लिए कह रही थी। अरे तू नन्ही सी जान ! ज्यादा इतरा मत ! अपनी औकात में रह। मैं अपना भला खुद सोच सकता हूं। तू अपनी फिक्र कर और चुपचाप यहां से चलती बन।
कोयल उसका तेवर देख चुपचाप वहां से उड़ चली। उसके रविय्ये से उसे तनिक भी हैरानी नहीं हुई, क्योंकि वह कौवे के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थी। एक शाम अचानक तेज आंधी और बारिश आई। कईं विशाल वृक्ष गिर गए पर यह आम का पेड़ अपनी जगह पर डटा रहा। हवा के थपेड़े व पानी की बौछारें इतनी तेज थी कि कोटर से बाहर निकलना मुश्किल था।
सभी वन्य प्राणी जहां-तहां छिपे हुए थे। 2 दिनों पश्चात हवा की रफ्तार के साथ बारिश भी हुई। कोयल के पास खाने-पीने की कमी नहीं थी। वह अपनी कोटर से बाहर झांक कर बारिश का मजा ले रही थी। इधर कौवे का मुंह उतरा हुआ था। बारिश के कारण 2 दिनों से अन्न का एक भी दाना नसीब नहीं हुआ था।
अपने कोटर के द्वार पर वह चिंता मग्न बैठा अपने दुर्दिन को कोस रहा था। उस पर नजर पड़ते ही कोयल पूछ बैठी कौवे भाई बहुत उदास लग रहे हो। सब खैरियत तो है ? आओ ना बारिश में नहाए मौसम की पहली बारिश है। छप छपा छप पानी में बहुत मजा आ रहा है। इस पर कौवा मायूसी के साथ बोला – बहन तुम ही नहाओ मेरा मन नहीं है। क्या बात है भाई ?
कुछ कहोगे भी ?क्या बताऊं। सब मेरी गलतियों की सजा है। कोटर में अन्न का एक दाना नहीं है। 2 दिनों से भूखा हूं। लगता है भूख के मारे जान ही निकल जाएगी। क्या करूं। कहां जाऊं। कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। तुमको हमेशा तुछ मानता रहा। तुम्हारा मजाक उड़ाया। काश तुमसे सीख लेता तो आज यह दिन देखने ना पढ़ते। अब क्या करोगे भाई ?
कोयल नहीं बहुत मासूमियत से पूछा। क्या कहूं बहन। यही तो सोच रहा हूं. बुरे वक्त में कोई साथ नहीं देता। इसके लिए भी मैं ही जिम्मेदार हूं। तुम्हारे जैसे नेक मित्र के साथ भी मैंने कभी अच्छा बर्ताव नहीं किया। कहते-कहते उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। उसे आत्मग्लानि हो रही थी। कहने लगा।
पता है बहन तुम्हारी अनुपस्थिति में कभी-कभी मैं तुम्हारा खाना भी चुराया करता था। उसी आदत के कारण आज मैं भूखा हूं। कौवे अपनी गलती का एहसास करते देख कोयल का दिल पसीज गया। वह कौवे से मुस्कुराते हुए बोली। भैया। तुम दुखी मत हो। तुम्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है। यह बहुत बड़ी बात है। मेरे कोटर में बहुत खाना है।
पहले तुम चल कर पेट भर खाना खा लो। बस एक वादा करो। क्या बहन बोलो ?कौवा बोला। यही कि तुम जीवन में फिर कभी आलस नहीं करोगे। कोयल बोली कौवे ने दोबारा कभी आलस नहीं करने का वचन दिया। फिर कोयल के साथ खाना खाकर अपनी भूख मिटाई। कोयल जैसी अच्छी पड़ोसी को पाकर वह खुशी से फूले नहीं समा रहा था।
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