सच्चा न्याय | Sachha Nyay, Hindi Kahani

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Sachha Nyay

भारतीय संस्कृति में काशी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। यहां के राजा न्याय के लिए अत्यंत प्रसिद्ध रहे हैं। बात बहुत पुरानी है। माघ का महीना था। शीत ऋतु थी। काशी नरेश की महारानी अपनी दासियों के साथ गंगा स्नान को गई थी। उस समय गंगा किनारे अन्य किसी को नहाने जाने की अनुमति नहीं थी। गंगा नदी के किनारे जो भी झोपड़िया थी।

उनको राज्य के राज्य सेवकों ने खाली करा लिया था। महारानी स्नान करने के उपरांत ठंड से बुरी तरह कांप रही थी। उन्होंने अपने आसपास देखा उन्हें कहीं पर भी सूखी लकड़ियां दिखाई नहीं दे रही थी। तब रानी ने एक दासी को बुलाकर कहा किसी एक झोपड़ी में आग लगा दो। जिससे मेरी सर्दी दूर हो जाए मुझे अपना शरीर सेंकना है।

दासी ने रानी से कहा महारानी जी इस झोपड़ी में दीन हीन गरीब रहते हैं या फिर साधु संत। यदि ऐसे जाड़े में इस में आग लगा दी जाएगी तो फिर यह गरीब लोग कहां जाएंगे ? महारानी का नाम करुणा था। लेकिन संपन्नता में पत्नी होने के कारण उन्हें दीन हीन गरीब लोगों के कष्ट का कोई अनुभव नहीं था। वह अपना आदेश पालन कराने में बड़ी चतुर थी।

उन्होंने तत्काल दूसरी दासी को आदेश दिया कि वह बड़ी कृपा वान बनी है। इसे तुरंत मेरे सामने से हटा दो और सामने वाले झोपड़े में आग लगा दो। महारानी करुणा की आज्ञा का तत्काल पालन किया गया। जब एक झोपड़ी में आग लगा दी गई तो तेज हवा के कारण आग फैलने लगी। देखते ही देखते सभी झोपड़े आग को समर्पित हो गए।

रानी जी की सर्दी तो दूर हो गई और वे राजमहल वापस आ गई। तभी जिन के झोपड़े जले थे वह रोते बिलखते राजसभा में पहुंच गए। महाराज को इस समाचार से अत्यंत मानसिक कष्ट हुआ। उन्होंने राज महल में महारानी के कक्ष में जाकर कहा। यह तुमने क्या किया ? तुमने हमारी प्रजा के घर जला कर बहुत बड़ा अन्याय किया है। इसका कुछ ध्यान नहीं है तुम्हें ?

महारानी को अपने रूप और अधिकार का बड़ा घमंड था। वह महाराज से बोली आप उन गंदे झोपड़े को घर कह रहे हैं दे? वह तो जला देने ही योग्य थे। इसमें अन्याय की कोई बात नहीं है। अब महाराज ने कुछ कठोर शब्दों में कहा महारानी न्याय सबके लिए बराबर होता है।

तुमने गरीबों को असहनीय कष्ट दिया है यह झोपड़े गरीबों के लिए बहुत कीमती थे और तुम यह भली प्रकार समझ जाओगी। महाराज ने तत्काल दासियों को आज्ञा दी। महारानी के स्वर्ण आभूषण और कीमती वस्त्र ले लिये जाएं। इनको एक फटी पुरानी साड़ी पहनाकर राजसभा में तुरंत उपस्थित करो। जब तक महारानी कुछ कहें इससे पूर्व महाराज अंत पुर से चले गए।

दासियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। एक भिखारिन की तरह फटी साड़ी पहने जब महारानी सभा में उपस्थित हुई तो न्यायासन पर बैठे महाराज ने प्रजा को अपनी घोषणा सुनाई। उन्होंने कहा मनुष्य जब तक समय कष्ट में नहीं होता वह दूसरों के कष्ट का अनुभव नहीं प्राप्त कर सकता। महारानी जी को राजसभा में निर्वासित घोषित किया जाता है।

जिन झोपड़ों को इन्होंने जलाया था जब तक यह भिक्षा मांगकर उन्हें नहीं बनवा देंगी। तब तक राजभवन में इनका प्रवेश वर्जित होगा।

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